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क्या महिलाओं को टिकट देने से पार्टियों को फ़ायदा होता है?
एब्स्ट्रैक्ट:इमेज कॉपीरइटGetty Imagesचुनाव के नतीजे आ चुके हैं और ये नतीजे बता रहे हैं कि महिलाओं को टिकट देना रा
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चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और ये नतीजे बता रहे हैं कि महिलाओं को टिकट देना राजनीतिक पार्टियों के लिए फ़ायदेमंद साबित होता है.
क्योंकि जिन दो पार्टियों ने अपने एक तिहाई से ज़्यादा टिकट दिए हैं उनको इस चुनाव में भारी सफलता हासिल हुई है.
ममता बनर्जी ने इस चुनाव में 41 फ़ीसदी महिला उम्मीदवारों को उतारा था. टीएमसी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाली 17 में से 9 महिलाओं ने चुनाव में जीत दर्ज की है.
वहीं, नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी ने 7 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था जिनमें से 71 फ़ीसदी महिला उम्मीदवार यानी 7 में से 5 महिला उम्मीदवार ये चुनाव जीतने में सफल रही हैं.
इस तरह बीजेडी 7 पुरुष और 5 महिलाओं को लोकसभा में भेजेगी. ये शायद किसी पार्टी के सांसदों में सबसे बेहतरीन लैंगिक संतुलन है.
राजनीति में महिलाओं के दख़ल को बढ़ाने के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था शक्ति से जुड़ीं निशा अग्रवाल मानती हैं कि इस चुनाव में महिलाओं की जीत महिलाओं के कमज़ोर उम्मीदवार होने की सामान्य धारणा को तोड़ेगी.
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निशा कहती हैं, “लोग ये मानते हैं कि महिलाएं चुनाव जिताऊ उम्मीदवार नहीं होती हैं और उन्हें टिकट देना जोख़िम से भरा होता है. इस चुनाव के बाद इस भ्रम को चुनौती मिलेगी. लेकिन इसके लिए आपको ममता बनर्जी और नवीन पटनायक जैसे नेताओं की ज़रूरत है जो कि ये बदलाव ला सकें.”
इस चुनाव में जीतकर संसद पहुंचने वाली महिला सांसदों में बीजेडी के टिकट से चुनाव लड़ने वाली प्रमिला बिसोई भी हैं जो बीते 20 सालों से स्वयं-सहायता समूह बनाकर महिलाओं की ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए काम कर रही थीं.
इनके अलावा इस चुनाव में एक डॉक्टर, एक नौकरशाह और एक वैज्ञानिक शोधार्थी भी शामिल हैं.
ममता की महिला उम्मीदवारों में नुसरत जहां और मिमि चक्रबर्ती जैसी युवा अभिनेत्रियां शामिल थीं. इसके साथ शताब्दी रॉय जैसी पूर्व अभिनेत्रियां भी शामिल हैं जिन्होंने तीसरी बार अपनी सीट पर जीत दर्ज की है.
काकोली घोष और माला रॉय जैसी वरिष्ठ राजनेताओं के अलावा महुआ मोइत्रा जैसी युवा महिला भी हैं जिन्होंने अपनी बैंक की शानदार नौकरी छोड़कर राहुल गांधी के साथ राजनीतिक सफ़र शुरू किया था.
आख़िरकार वह टीएमसी में गईं और वहाँ विधायक बनीं. इस चुनाव में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की है.
ममता बनर्जी पर 'दीदी: द अनटोल्ड ममता बनर्जी' किताब लिखने वालीं शुतपा पॉल कहती हैं, “ममता निश्चित तौर पर महिलाओं को राजनीति में आने के लिए प्रेरित करना चाहती हैं. और वह लगातार उन्हें टिकट भी दे रही हैं. इस बार भी उन्होंने ज़मीनी नेता माला रॉय और पूर्व बैंकर महुआ मोइत्रा जैसी महिलाओं को टिकट दिया है.”
इस चुनाव की बड़ी खिलाड़ी
देश की दो सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस ने 50 से ज़्यादा महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन ये संख्या पुरुषों के मुकाबले बेहद कम थी.
बीजेपी ने 12 फ़ीसदी महिलाओं को, तो कांग्रेस ने 13 फ़ीसदी महिलाओं को टिकट दिया था.
बीजेपी की कुल 55 महिला उम्मीदवारों में से 41 उम्मीदवारों की जीत हुई, ऐसे समझें कि उनकी सफलता दर 74 फ़ीसदी रही. वहीं कांग्रेस की कुल 52 महिला उम्मीदवारों में से छह को ही जीत मिली और इनकी सफलता दर 11 फ़ीसदी ही रही.
उम्मीदवारों के भाग्य का फ़ैसला ज़ाहिर तौर पर कई फ़ैक्टर से तय होता है, पार्टी की लोकप्रियता, उम्मीदवार की योग्यता, उन्हें दिए गए लोकसभा क्षेत्र और उनके अभियान पर ख़र्च की गई रकम मायने रखती है.
दिग्गज महिला नेताओं जैसे सोनिया गांधी, कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी प्रिनीत कौर और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को जीत मिली ही, इसके अलावा भी आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस की कुछ महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की.
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रम्या हरिदास ऐसी ही एक उम्मीदवार थीं. रम्या की मां दर्ज़ी का काम करती हैं और पिता कुली हैं. रम्या जाने-माने लेफ़्ट नेता को हराकर केरल की दूसरी दलित महिला सांसद बन गई हैं.
एक ऐसी ही अन्य कांग्रेस उम्मीदवार हैं एस. जोतिमणि. एक किसान पिता की संतान जोतिमणि 22 साल की उम्र में युवा कांग्रेस में शामिल हुई थीं.
कांग्रेस पर वंशवाद की राजनीति करने का आरोप लगाने वाली बीजेपी को ख़ुद इस मुद्दे पर जवाब देना चाहिए. क्योंकि महाराष्ट्र में जीतने वाली ज़्यादातर महिला उम्मीदवार बड़े राजनीतिक घरानों से ताल्लुक़ रखती हैं. मसलन- प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन, एकनाथ खडसे की बहू रक्षा खडसे और गोपीनाथ मुंडे की बेटी प्रीतम मुंडे.
बीजेपी ने कई महिला फ़िल्मी सितारों को भी चुनावी मैदान में उतारा जैसे हेमा मालिनी, किरण खेर और लॉकेट चटर्जी. इसके अलावा बीजेपी के बड़े महिला नामों में प्रज्ञा ठाकुर और निरंजन ज्योति शामिल रहीं.
इस चुनाव में बीजेपी की स्टार महिला उम्मीदवार रहीं स्मृति इरानी जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उनके गढ़ अमेठी में हराया और साबित किया कि सियासत की पक्की खिलाड़ी हैं.
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वंशवाद की राजनीति
सुतपा पॉल कहती हैं कि उम्मीदवार का योग्य होना एक वांछनीय चीज़ तो है लेकिन ये मिलना भारत की राजनीति में थोड़ा मुश्किल है. यही बात महिला उम्मीदवारों पर भी लागू होती है.
वह कहती हैं, ''वंशवाद की राजनीति हर पार्टी में फैली हुई है कि क्या राष्ट्रीय और क्या क्षेत्रीय. और दुर्भाग्य से इस बार योग्य उम्मीदवार आम आदमी पार्टी की आतिशी अपने काम के बावजूद जीत नहीं पाई हैं क्योंकि यहां योग्यता के इतर कई अन्य फ़ैक्टर हैं .''
तमिलनाडु की डीएमके पार्टी ने दो महिला उम्मीदवारों को उतारा और दोनों की जीत हुई. ये दोनों महिलाएं दो बड़े डीएमके के नेताओं की बेटी थीं. एक तो करुणानिधि की बेटी कनिमोई हैं और दूसरी हैं ऐसे ही अन्य डीएमके नेता की बेटी सुमाथी.
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यह एक प्रवृत्ति है जो पार्टियों में दिखती है.
जीतने वाली सांसदों में बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी की वीणा देवी, जनता दल यूनाइटेड के एमएलसी दिनेश सिंह की पत्नी हैं, जनता दल यूनाइटेड की पूर्व विधायक जगमातो देवी की बहू कविता, शिरोमणि आकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर, पीए संगमा की बेटी अगाथा संगमा इसकी उदाहरण हैं.
इन महिलाओं को अपने राजनीतिक सफ़र में प्रभावशाली परिवारों से आने का फ़ायदा मिला है.
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लेकिन इसके अलावा ऐसी भी महिलाएं हैं जो अपने दम पर एक मुकाम हासिल करती हैं.
आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस ने चार महिला उम्मीदवारों को उतारा और सभी को जीत मिली. इनमें से एक ही उम्मीदवार गोड्डिटी माधवी बड़े राजनेता की बेटी हैं.
अन्य महिलाओं में एक वरिष्ठ राजनेता और पूर्व राज्यसभा सांसद वंगा गीता हैं और पेशे से डॉक्टर अनकपल्ली सत्यवती हैं.
महाराष्ट्र में निर्दलीय उम्मीदवार नवनीत कौर की जीत भी ऐसी ही है. नवनीत शादी के बाद पंजाब से महाराष्ट्र आई थीं और आज यहां लोगों की आवाज़ संसद में उठाएंगी.
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महिलाओं के मामले में दुनिया में भारत की क्या स्थिति है
पीआरएस इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इस बार के लोकसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या 78 है, जो कि अब तक की सबसे ज़्यादा संख्या है. इसे देखेंगे तो निश्चित तौर पर महिला उम्मीदवारों की संख्या में उछाल तो है लेकिन ये रेंगती हुई गति से आगे बढ़ रही है.
पहली लोकसभा में 24 महिलाएं थीं जो कुल उम्मीदवारों का 5 फ़ीसदी है, 16वीं लोकसभा में 66 महिलाएं थीं जो कुल उम्मीदवारों का 12 फ़ीसदी रहा.
अब आने वाली नई लोकसभा में ये आंकड़ा 14 फ़ीसदी पर पहुंचा है.
हालांकि, महिला सांसदों का प्रतिशत पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है, लेकिन कुछ देशों की तुलना में यह अभी भी कम है.
रवांडा में ये संख्या 62 फ़ीसदी, दक्षिण अफ़्रीका में 43 फ़ीसदी, यूके में 32 फ़ीसदी, अमरीका में 24 फ़ीसदी और बांग्लादेश में 21 फ़ीसदी है.
बीजेपी ने 303 सीटें अकेले बूते पर जीती हैं वहीं एनडीए को 350 सीटें मिली हैं.
निशा कहती हैं, ''महिलाओं के मुद्दों पर राजनीतिक पार्टियां प्रतिबद्ध नज़र नहीं आती हैं, देखना होगा कि इस जनादेश के बाद क्या बीजेपी महिला आरक्षण बिल लेकर आएगी या नहीं.''
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